Mere Jajbaat
मैं Alia Kaur हूँ ! भाग - 3
26-06-25 (10:12)     2 Views

विनीता मौसी — फिर आमना-सामना


“कुछ लोग ज़िंदगी में जख्म बनकर आते हैं... और कुछ लोग सबक बनकर।”



बारिश हो रही थी। आरव अपनी किताबों से खेल रहा था, और मैं खिड़की के पास बैठी चाय पी रही थी। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।


दरवाज़ा खोला — सामने वही चेहरा।


विनीता मौसी।


वही लाल लिपस्टिक, वही बनावटी हँसी, पर इस बार आँखों में घमंड नहीं... हैरानी थी।


“कैसी है बेटा?” — उन्होंने पूछा।


मैंने कहा, “ठीक हूँ। अब काम नहीं करती, बच्चा पालती हूँ।”


उन्होंने घर के अंदर देखा — टूटी खाट, दीवार पर टंगी रामायण, और आरव की मुस्कुराती आँखें।


“काम है बेटा, इंटरनेशनल शूट, बहुत पैसा मिलेगा।” — वही पुराना प्रस्ताव।


मैंने उनकी आँखों में देखा और कहा —


“अब मैं बिकने के लिए नहीं बनी... मैं अब किसी की माँ हूँ।”


वो कुछ पल चुप रहीं। फिर बोलीं —  

“तू बदल गई।”


मैंने कहा —  

“हाँ, अब मैं टूटती नहीं... अब मैं सम्भालती हूँ।”


उनके होंठ थरथराए, शायद कुछ कहना चाहती थीं, पर लौट गईं।


मैं खिड़की पर वापस आई। बारिश अब रुक चुकी थी।


आरव मेरी गोद में चढ़ा, उसके गाल मेरे चेहरे से लगे —


“माँ, आप सबसे बहादुर हो ना?”



मैंने मुस्कुराकर कहा —  

“हाँ बेटा, और अब कभी कोई मौसी हमें तोड़ नहीं पाएगी।”


अब मेरी कहानी पूरी होती है —


Alia की नहीं, एक माँ की... जिसने हार को ममता से हरा दिया।


अब मैं सिर्फ 'Alia Kaur' नहीं... मैं आरव की माँ हूँ।




0 comment of posting मैं Alia Kaur हूँ ! भाग - 3
no comment
New Comment

Smilies List